भक्त मंडली

रविवार, 16 मार्च 2014

है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !

है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
मयतनया का कहा हुआ सच होने लगा प्रतीत ,
अजर-अमर-पावन है जग में सियाराम की प्रीत ,
सिया-हरण का पाप उसे अब करता है भयभीत ,
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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सीता के अश्रु अंगारे  बनकर उसे जलावेंगें ,
पतिव्रता के श्राप असर रावण पर आज दिखावेंगे ,
उसकी काम-पिपासा ही मृत्यु का कारण होगी ,
आज दशानन राम-वाण चल तेरा दम्भ मिटावेंगें ,
''सत्यमेव-जयते'' की जग में चली आ रही रीत !
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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अनुज विभीषण ने भी उसको कितना समझाया था ,
''सीता लौटा दें' ये उसको तनिक नहीं भाया था ,
पद-प्रहार कर भरी सभा में किया अनुज अपमानित ,
परम हितैषी को शत्रु का चोला पहनाया था ,
आज कचोटे क्षण-क्षण उसको उसका दुष्ट अतीत !
है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !
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गिरे मनोबल से रावण जब युद्ध-भूमि में आया ,
मायापति को निज माया का अद्भुत तेज दिखाया ,
श्री राम ने खेल खिलाकर अंतिम वाण चलाया ,
नाभि का अमृत सूखा दशशीश को काट गिराया ,
धर्म-पताका फहराई प्रण पूरण हुआ पुनीत !
 है रावण की हार अटल और श्री राम की जीत !

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 5 मार्च 2014

सीता पे लांछन था लगा ,रावण ने उनको क्यूँ हरा ?




पिछली एक पोस्ट

[समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन]

 पर श्री दुली चंद करेल जी की ये टिप्पणी प्राप्त हुई -

बारम्बार बनावट ने सत्य को रौंदा है।
रावण नीच तो सीता पवित्र कैसे?

अब ऐसे कुत्सित -विचारों का क्या उत्तर दिया जाये ?माता सीता की पवित्रता पर इस प्रकार के लांछन लगाना कोई नयी बात नहीं .माता सीता ने क्यूँ लांघी लक्ष्मण -रेखा और १६ दिसंबर २०१२ को सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दामिनी के रात्रि में घूमने पर पुरुष -वर्ग ऊँगली उठाता ही रहा है .मर्यादा का प्रहरी पुरुष वर्ग अपनी करनी पर जरा भी ध्यान देता तो न सिया-हरण होता न द्रौपदी का चीर-हरण पर दुःख की बात है पुरुष-वर्ग हर बार स्त्री को ही दोषी ठहरा देता है -
सीता पे लांछन था लगा ,रावण ने उनको क्यूँ हरा ?
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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कामी ,लम्पट ,कापुरुष ने ; छल-युक्त कर्म था किया ,
महापुरुष श्री राम से प्रतिशोध इस भांति लिया ,
पाप था दशशीश का ; दंड सीता ने भरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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कट गए रावण के सिर ; हुई धर्म की स्थापना ,
पितृ-सत्ता से हुआ ; सियाराम का तब सामना ,
अग्नि-परीक्षा लेने का राम ने निर्णय करा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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सीता के एक स्पर्श से अग्नि भी पावन हो गयी ,
श्री राम की अर्द्धांगिनी सीता महारानी भयी ,
लेकिन सिया की शुद्धि पर संदेह -जलद फिर आ घिरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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है यही अब प्रचलित श्री राम ने त्यागी सिया ,
पर बहुत सम्भव सिया ने अवध-त्याग स्वयं किया ,
स्वाभिमानी जानकी पर तर्क ये उतरे खरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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सीता को वापस लाने का पुनः खेल था रचा गया ,
शुद्धि -परीक्षा का पुनः आग्रह किया गया ,
सीता के प्राण ले लिए पर दम्भ नर का न मरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
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त्रेता हो या कलियुग ; धरा पर राज नर ही कर रहे ,
रावण-दुशासन रूप नर हर युग में छलकर धर रहे ,
अपने किये दुष्कर्म का आरोप नारी सिर धरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
शिखा कौशिक 'नूतन 

मंगलवार, 4 मार्च 2014

समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन


घाव  लगें जितनें भी तन पर कहलाते आभूषण ,
वीर का लक्ष्य  करो शीघ्र ही शत्रु -दल  का मर्दन ,
अडिग -अटल हो करते रहते युद्ध -धर्म का पालन ,
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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युद्ध सदा लड़ते हैं योद्धा बुद्धि -बाहु  बल से ,
कापुरुषों की भाँति न लड़ते हैं माया -छल से ,
शीश कटे तो कटे किन्तु पल भर को न झुकता है ,
आज अभी लेते निर्णय क्या करना उनको कल से !
राम-वाण के आगे कैसे टिक सकता है रावण ?
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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सिया -हरण का पाप करे जब रावण इस धरती पर ,
सज्जन ,साधु ,संत सभी रह जाते हैं पछताकर ,
उस क्षण योद्धा लेता प्रण अपने हाथ उठाकर ,
फन कुचलूँगा हर पापी का कहता वक्ष फुलाकर ,
सुन ललकार राम की हिलता लंका का सिंहासन !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !
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गर्जन-तर्जन मार-काट मचता है हा-हा कार ,
कटती गर्दन -हस्त कटें बहती रक्त की धार ,
रणभूमि का करते योद्धा ऐसे ही श्रृंगार ,
गिर-गिर उठकर पुनः-पुनः करते हैं वार-प्रहार ,
वीरोगति रूप मृत्यु का कहलाता सुन्दरतम !
समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन !

शिखा कौशिक 'नूतन'