सीता अपमान का प्रतिउत्तर !
आज जनकपुर स्तब्ध भया ; डोल गया विश्वास है ,
जब से जन जन को ज्ञात हुआ मिला सीता को वनवास है .
मिथिला के जन जन के मन में ये प्रश्न उठे बारी बारी ,
ये घटित हुई कैसे घटना सिया राम को प्राणों से प्यारी ,
ये कुटिल चाल सब दैव की ऐसा होता आभास है .
हैं आज जनक कितने व्याकुल पुत्री पर संकट भारी है ?
ये होनी है बलवान बड़ी अन्यायी अत्याचारी है ,
जीवन में शेष कुछ न रहा टूटी मन की सब आस है .
माँ सुनयना भई मूक बधिर अब कहे सुने किससे और क्या ?
क्या इसीलिए ब्याही थी सिया क्यों कन्यादान था हमने किया ?
घुटती भीतर भीतर माता आती न सुख की श्वास है !
सीता की सखियाँ रो रोकर हो जाती आज अचेत हैं ,
प्रस्तर से ज्यादा हुआ कठोर श्रीराम का ये साकेत है ,
सीता हित चिंतन करती वे हो जाती सभी उदास हैं !
मिथिलावासी करते हैं प्राण युग युग तक सभी निभावेंगे ,
पुत्री रह जाये अनब्याही अवध में नहीं ब्याहवेंगें ,
सीता अपमान का प्रतिउत्तर मिथिला के ये ही पास है !
शिखा कौशिक 'नूतन'