भक्त मंडली

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !

Ram Laxman Sita Hanuman HD
चौदह  बरस की देर रामराज में न होती
सर्वाधिकार सुरक्षित 

चौदह  बरस की देर रामराज में न होती ,
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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राम के वियोग में दशरथ का प्राण-त्याग ,
तीनों रानियों का लुट गया सुहाग ,
आज अवध में यूँ उदासी न  होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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कैकेयी को श्री राम से था सर्वाधिक स्नेह ,
मंथरा ने भ्रमित किया आ गयी प्रलय ,
कैकेयी पश्चाताप में यूँ जल रही न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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राम बिन भरत का उर कर रहा विलाप ,
चित्रकूट में हुआ श्री राम से मिलाप ,
भ्रातृ प्रेम की बही अमृत सुधा ना होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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हनुमान  जैसे  भक्त  से श्रीराम का मिलन ,
सुग्रीव संग मैत्री मिटा बालि-अघ का तम ,
श्री राम की सेना यूँ संगठित न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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चौदह बरस के कष्ट और सिया का हरण ,
लक्ष्मण को शक्ति -घात व् रावण का मरण ,
ये सभी घटनाएँ यूँ ही घट गयी न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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लंका पर विजय विभीषण का अभिषेक ,
सीता की अग्नि-परीक्षा राम आये फिर साकेत ,
साकेत के धीरज की यूँ परीक्षा न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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'रावण के घर रही सिया 'अवध में उठा अपवाद ,
सीता गयी वनवास महारानी पद त्याग ,
क्यूँ  लव-कुश की जननी धरा में समाई होती ?
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !

शिखा कौशिक 'नूतन '



1 टिप्पणी:

वाणी गीत ने कहा…

मंथरा ना होती तो रामायण कैसे होती !!
अच्छा लिखा है !