जब वचन निभाने राम चले ....

जब वचन निभाने राम चले ,
संग सिया चली और लखन चले,
दशरथ के प्राणाधार चले ,
कौशल्या के अरमान चले
जब वचन ......
जिस आँगन में खेले राघव ,
घुटनों के बल दौड़े जिसमे ,
नयनों में अश्रु भर रघुवर
उस आँगन को ही छोड़ चले .
जब वचन .......
कैकेयी इच्छानुसार चले ,
होनी को कर स्वीकार चले ,
उर्मिल उर की सब आस चली ,
सुमित्रा के विश्वास चले .
जब वचन निभाने ....
सारी समृद्धि और वैभव ,
महलों की सारी सुविधाएँ ,
त्यागी तत्क्षण अविलम्ब सभी ,
धारण कर तापस वेश चले .
जब वचन ....
साकेत की लेकर सब रौनक ,
सरयू की सारी शीतलता ,
उपवन के पुष्पों की सुरभि ,
चिड़ियों की लेकर चहक चले .
जब वचन ..........
मित्रों के मुख की मुस्कानें
और प्रजा ह्रदय की निश्चितता ,
युवा वर्ग की उत्सुकता ,
साकेत का ले आनंद चले .
जब वचन ..................
उषाकाल की उज्ज्वलता
व् निशाकाल की मादकता ,
प्रकृति की सारी चंचलता ,
ले पवन का सब आवेग चले .
जब वचन ..................
संगीत स्वर सब शांत हुए ,
नुपुर ध्वनि भी मौन हुई ,
चौदह वर्षों को राम नहीं
साकेत के मानो प्राण चले .
जब वचन निभाने राम चले .
शिखा कौशिक
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