भक्त मंडली

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

हे जनक तेरी लाडो ने ...


हे जनक तेरी लाडो ने हाय कितनी पीड़ा झेली है !
चली अवध को छोड़ सिया वन को आज अकेली है .

जनकनंदिनी  ने पिता के प्रण की आन बचाई ,
जिसने शिवधनु भंग किया उसे वरमाला पहनाई ,
चली आज कंटक पथ  पर जो फूलों में ही खेली है .
चली अवध को छोड़ ..............


माँ सुनयना ने सिखलाया पत्नी धर्म निभाना ,
सिया ने तन-मन कर्म सभी से पति को सबकुछ माना ,
सिया का जीवन आज बना कितनी कठिन पहेली है !
चली अवध को छोड़ ........................

वन वन भटकी जनकनंदिनी राम की बनकर छाया ,
ऐसी  सीता माता पर भी प्रजा ने दोष लगाया  ,
महारानी पद त्याग चली संग कोई न सखी सहेली है .
चली अवध को छोड़ .....
                                         शिखा कौशिक 

3 टिप्‍पणियां:

Rakesh Kumar ने कहा…

शिखा जी आपकी आवाज में बहुत भोलापन
और मधुरता है.
आपके डाक्टर बनने के लिए बहुत बहुत बधाई.
कब और किस् विषय में डॉक्टरेट की आपने?

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार डॉ.साहिब.

Shikha Kaushik ने कहा…

बधाई हेतु हार्दिक धन्यवाद .मैंने ''हिंदी की महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में स्त्री विमर्श '' विषय पर शोध कार्य संपन्न किया .

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति बधाई