हूँ जनक की नन्दनी श्री राम की दासी हूँ मैं ,
स्वामी चले वनवास को छोड़ सब सुख -रास-रंग !
ज्यूँ चुभा कंटक कोई रुकता न पग बढती उमंग ,
राज हो वनवास हो मैं सदा श्री राम संग !
उर में मेरे उल्लास है कि मैं प्रिय के साथ हूँ ,
जब भी उन्हें निहारती मन में उठे अद्भुत तरंग !
कैसे रुकूँ महलों में अब जाना प्रिय के साथ है ,
सीता के सर्वस्व हैं जब से किया शिव-धनुष-भंग !
सिया-राम दोनों एक हैं मैं देह हूँ वे प्राण हैं ,
है मिलन अपना अटल ज्यों पुष्प में व्यापी सुगंध !
शिखा कौशिक 'नूतन '
4 टिप्पणियां:
सुन्दर आध्यात्मिक प्रस्तुति आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें कौन मजबूत? कौन कमजोर ? .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1
बहुत प्यारा चित्रण ..
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें..
बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति !!
पधारें बेटियाँ ...
बहुत खूब .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
पधारें मेरी नबीनतम पोस्ट पर
हालात कैसे आज बदले है.
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