भक्त मंडली

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

राज हो वनवास हो सीता सदा श्री राम संग !

 

 हूँ जनक की नन्दनी श्री राम की दासी हूँ मैं ,
स्वामी चले वनवास को छोड़ सब सुख -रास-रंग !


ज्यूँ चुभा कंटक कोई रुकता न पग बढती उमंग ,
राज हो वनवास हो मैं सदा श्री राम संग !


उर में मेरे उल्लास है कि मैं प्रिय के साथ हूँ ,
जब भी उन्हें निहारती मन में उठे अद्भुत तरंग !


कैसे रुकूँ  महलों में अब जाना प्रिय के साथ है ,
सीता के सर्वस्व हैं जब से किया शिव-धनुष-भंग !




सिया-राम दोनों एक हैं मैं देह हूँ वे प्राण हैं ,
है मिलन अपना अटल ज्यों पुष्प में व्यापी सुगंध !

 
      शिखा कौशिक 'नूतन '




4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सुन्दर आध्यात्मिक प्रस्तुति आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें कौन मजबूत? कौन कमजोर ? .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

कविता रावत ने कहा…

बहुत प्यारा चित्रण ..
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें..

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर....बेहतरीन प्रस्तुति !!
पधारें बेटियाँ ...

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत खूब .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
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