भक्त मंडली

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !

सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !


सीते मुझे साकेत विस्मृत क्यों नहीं होता !
क्षण क्षण ह्रदय उसके लिए है क्यों मेरा रोता !

बिन तात के अनाथ हो गया मेरा साकेत ,
अब कौन सुख की नींद होगा वहां सोता !
सीते मुझे साकेत ...........................

माताओं के वे मलिन मुख ; अश्रु भरे नयन ,
साकेत सकल दुःख का बोझ स्वयं ही ढ़ोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

कितना विकल होगा भरत व् नन्हा शत्रुघ्न !
उर से लगा लूं उस घडी की बाँट मैं जोहता .
सीते मुझे साकेत ...........................

यूं तो यहाँ भी पवित्र पावन नर्मदा बहती ,
पर प्यासा ह्रदय सरयू के जल में ले रहा गोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

होगें वहां साकेत में कैसे मेरे सब मित्र ?
उनके स्नेह की स्मृति से उर धैर्य खोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

साकेत में आती तो होंगी अब भी षड ऋतु !
क्या अब भी श्रावण और भादो सबको भिगोता  ?
सीते मुझे साकेत ...........................

कितना समय हुआ साकेत से विलग हुए !
ये वियोग शूल उर में तीव्र शूल चुभोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

किसने लिखी साकेत से मेरे वनवास की कथा ?
निश्चय ही कुटिल देव विष के बीज ये बोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

श्वास श्वास में बसी साकेत की सुरभि  ,
साकेत सम कोई नहीं मन मेरा मोहता .
सीते मुझे साकेत ...........................

साकेत और राम हैं एक-दूजे के पर्याय ,
नित राम नेह धागे में प्रेम पुष्प पिरोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

कर पाउँगा पुन: कभी साकेत के दर्शन ?
ये प्रश्न  दुःख - अर्णव में मुझको डुबोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

जन्म -भूमि को नमन करता यहाँ से राम ,
तुझसे मिलन हो शीघ्र राम स्वप्न संजोता .
सीते मुझे साकेत ...........................

                                                                      शिखा कौशिक ''नूतन ''


मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !

विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



धर्म पताका फहराने , पापी को सबक सिखाने ,
चली राम की सेना रावण का दंभ मिटाने !
हर हर हर हर महादेव !

रावण के अनाचारों से डरकर  वसुधा है डोली ,
दुष्ट ने ऋषियों के प्राणों से खेली खून की होली ,
सत्यमेव जयते की ज्योति त्रिलोकों में जगाने !
चली राम की सेना ........................
हर हर हर हर महादेव !

तीन लोक में रावण के आतंक का बजता डंका ,
कैसे मिटेगा भय रावण का देवों को आशंका ?
मायावी की माया से सबको मुक्ति दिलवाने !
चली राम की सेना ........................
हर हर हर हर महादेव !

जिस रावण ने छल से हर ली पंचवटी से सीता ,
शीश कटे उस रावण का , करें राम ये कर्म पुनीता ,
पतिव्रता नारी को खोया सम्मान दिलाने !
चली राम की सेना ......
हर हर हर हर महादेव !

एकोअहम के दर्प में जिसने त्राहि त्राहि मचाई ,
उस रावण का बनकर काल आज चले रघुराई ,
निशिचरहीन करूंगा धरती अपना वचन निभाने !   
चली राम की सेना .....................
हर हर हर हर महादेव !

                                                   शिखा कौशिक 'नूतन' 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !

चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !


कैसे सहे जाते हैं होनी के लिखे लेख ?
चौदह बरस वनवास काट राम बन कर देख !


कैसे निभाते कुल की रीत ; प्रिय पिता से प्रीत ,
शांत कैसे करते हैं कैकेयी उर के क्लेश ?
चौदह बरस ....................



होना था जिस घड़ी श्री राम का अभिषेक ,
उसी घड़ी चले धर कर वो तापस वेश !
चौदह बरस ........................



कैसे चले कंटकमय पथ पर संग सिया लखन ?
काँटों की चुभन पर भरते न आह लेश !
चौदह बरस वनवास काट ......


कैसे भरत उर शांत किया चित्रकूट में ?
निज निज निभाओ धर्म सब देते हैं ये सन्देश .
चौदह बरस वनवास काट ........


पंचवटी में छल से सिया हरण , जटायु -मरण ,
कोमल ह्रदय श्री राम सहते कैसे ये वज्र ठेस ?
चौदह बरस वनवास काट ......





हनुमत से दास से मिलन , सुग्रीव -मित्रता ,
बालि का वध , चौमास ताप , सिया -स्मृति अनेक .
चौदह बरस वनवास .....


सिया सुधि , सेना -गठन , दक्षिण को फिर गमन ,
कैसे बना राम-सेतु  ? किया लंका में प्रवेश .
चौदह बरस ................


लंका पर चढ़ाई ,  कटा रावण-शीश ,
अग्नि-परीक्षा सीता की , हुए राम -सिया एक .
चौदह बरस ................



पुष्पक विमान पर चले फिर अवध की और ,
धीरज से काट दुःख के दिन देते प्रभु संकेत  .
चौदह बरस .......................
                               शिखा कौशिक 'नूतन'















मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

हे जनक तेरी लाडो ने ...


हे जनक तेरी लाडो ने हाय कितनी पीड़ा झेली है !
चली अवध को छोड़ सिया वन को आज अकेली है .

जनकनंदिनी  ने पिता के प्रण की आन बचाई ,
जिसने शिवधनु भंग किया उसे वरमाला पहनाई ,
चली आज कंटक पथ  पर जो फूलों में ही खेली है .
चली अवध को छोड़ ..............


माँ सुनयना ने सिखलाया पत्नी धर्म निभाना ,
सिया ने तन-मन कर्म सभी से पति को सबकुछ माना ,
सिया का जीवन आज बना कितनी कठिन पहेली है !
चली अवध को छोड़ ........................

वन वन भटकी जनकनंदिनी राम की बनकर छाया ,
ऐसी  सीता माता पर भी प्रजा ने दोष लगाया  ,
महारानी पद त्याग चली संग कोई न सखी सहेली है .
चली अवध को छोड़ .....
                                         शिखा कौशिक 

जब वचन निभाने राम चले ....


जब वचन  निभाने राम चले ....


जब वचन  निभाने राम चले ,
संग सिया चली और लखन चले,
दशरथ के प्राणाधार चले ,
कौशल्या के अरमान चले 
जब वचन ......

जिस आँगन में खेले राघव ,
घुटनों के बल दौड़े जिसमे ,
नयनों में अश्रु भर रघुवर 
उस आँगन को ही छोड़ चले .
जब वचन .......

कैकेयी इच्छानुसार  चले ,
होनी को कर स्वीकार चले ,
उर्मिल उर की सब आस चली ,
सुमित्रा के विश्वास चले .
जब वचन निभाने ....

सारी  समृद्धि  और वैभव ,
महलों की सारी सुविधाएँ ,
त्यागी तत्क्षण अविलम्ब सभी ,
धारण कर तापस वेश चले .
जब वचन .... 

साकेत की लेकर सब रौनक ,
सरयू की सारी शीतलता ,
उपवन  के पुष्पों की सुरभि ,
चिड़ियों की लेकर चहक चले .
जब वचन ..........

मित्रों के मुख की मुस्कानें 
और प्रजा ह्रदय की निश्चितता ,
युवा वर्ग की उत्सुकता ,
साकेत का ले आनंद चले .
जब वचन ..................

उषाकाल की उज्ज्वलता 
व् निशाकाल की मादकता  ,
प्रकृति की सारी चंचलता  ,
ले पवन का सब आवेग चले .
जब वचन ..................

संगीत स्वर सब शांत हुए ,
नुपुर ध्वनि भी मौन हुई ,
चौदह वर्षों को राम नहीं 
साकेत के  मानो प्राण चले .
जब वचन निभाने राम चले .

                                   शिखा कौशिक