भक्त मंडली

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

जब वचन निभाने राम चले ....


जब वचन  निभाने राम चले ....


जब वचन  निभाने राम चले ,
संग सिया चली और लखन चले,
दशरथ के प्राणाधार चले ,
कौशल्या के अरमान चले 
जब वचन ......

जिस आँगन में खेले राघव ,
घुटनों के बल दौड़े जिसमे ,
नयनों में अश्रु भर रघुवर 
उस आँगन को ही छोड़ चले .
जब वचन .......

कैकेयी इच्छानुसार  चले ,
होनी को कर स्वीकार चले ,
उर्मिल उर की सब आस चली ,
सुमित्रा के विश्वास चले .
जब वचन निभाने ....

सारी  समृद्धि  और वैभव ,
महलों की सारी सुविधाएँ ,
त्यागी तत्क्षण अविलम्ब सभी ,
धारण कर तापस वेश चले .
जब वचन .... 

साकेत की लेकर सब रौनक ,
सरयू की सारी शीतलता ,
उपवन  के पुष्पों की सुरभि ,
चिड़ियों की लेकर चहक चले .
जब वचन ..........

मित्रों के मुख की मुस्कानें 
और प्रजा ह्रदय की निश्चितता ,
युवा वर्ग की उत्सुकता ,
साकेत का ले आनंद चले .
जब वचन ..................

उषाकाल की उज्ज्वलता 
व् निशाकाल की मादकता  ,
प्रकृति की सारी चंचलता  ,
ले पवन का सब आवेग चले .
जब वचन ..................

संगीत स्वर सब शांत हुए ,
नुपुर ध्वनि भी मौन हुई ,
चौदह वर्षों को राम नहीं 
साकेत के  मानो प्राण चले .
जब वचन निभाने राम चले .

                                   शिखा कौशिक 





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