भक्त मंडली

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

'कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी '


रघुकुल के उज्ज्वल भाल पर कालिख न लगने पायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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मेरे ह्रदय में हर घड़ी मेरे प्रभु का वास है ,
मेरे प्रभु को भी मेरी शुद्धि पर विश्वास है ,
बस ये तसल्ली उर में ले वनवास सीता जायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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अपवाद जिस दिन से उठा मेरे प्रभु गम्भीर थे ,
सीता की निंदा हो रही ये सोचकर अधीर थे ,
अपने प्रिय के शोक का कारण नहीं कहलायेगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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विष पी रहे प्रभु मेरे नीलकंठ बन ,
इसीलिए मैं कर रही वन को हूँ गमन ,
राम की अर्द्धांगिनी अपना वचन निभाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
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गर्भ में प्रभु-अंश है जन्म देगी उसको जब ,
रघुकुल का वो गौरव बने ऐसी शिक्षा देगी सब ,
नारी को सम्मान दो सीता उसे सिखाएगी !
कहना अवध से हे लखन ! सीता न वापस आएगी !!
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 18 जनवरी 2014

विषमयी जीवन राम कर रहा वहन

Shri Ram HD
विषमयी जीवन राम कर रहा वहन ,
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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स्नेहमयी कैकेयी माता कैसे विषैली हो गयी ?
राम से बढ़कर प्रिय राज्य -लक्ष्मी हो गयी !!
प्रेम से कह देती माँ करता मैं वनगमन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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पुत्र-प्रेम से विवश पितु मेरे व्यथित भए ,
काल की गति कुटिल मुख से वे कुछ न कहें ,
पर राम तो निभाएगा प्राण देकर भी वचन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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हो गयी बेसुध मेरी जननी भी ये जानकर ,
कर रहा वन को गमन मैं वेष तापस धारकर कर ,
दृढ उर से कर रहे सिया लखन अनुसरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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रोक रहे नर व् नारी 'राम मत जाओ ',
तुम ही राजा हो हमारे मान भी जाओ ,
बिन तुम्हारे तय हमारा अब तो है मरण !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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जन जन से मेरी प्रार्थना धीरज धरो तुम सब ,
चौदह बरस कट जायेंगें विपदा मिटेंगीं सब ,
मेरा ही रूप हैं प्रिय भरत व् शत्रुघ्न !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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बहकी प्रजा चल पड़ी श्री राम के पीछे ,
मुरझायी हुई पौध हम राम ही सींचें ,
तमसा किनारे देंगें हम आमरण अनशन !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !
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मध्य-रात्रि में सब करने लगे शयन ,
सिया लखन सहित किया मैंने था गमन ,
प्रणाम कर उन जन को जिनके उर में नहीं छल !
पी रहा शिव की भांति कालकूट दुर्वचन !

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 15 जनवरी 2014

चौदह बरस विरह-ताप को कैसे सहेगी उर्मिला ?


देख कर उर्मिल का मुख ,
माँ का ह्रदय व्यथित हुआ ,
दैव ने नव-वधु को
क्यूँ ये दारुण दुःख दिया ?
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भर आये अश्रु नयनों में ,
जननी लखन की हुई विकल ,
मन में उठे ये भाव थे ,
होनी ही होती है प्रबल !
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लाये थे भ्रात चारो जब ,
ब्याह कर वधू साकेत में ,
आनंद छा गया था तब ,
दशरथ के इस निकेत में !
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वो दिवस और आज का ,
दोनों में कितना भेद है !
कैकेयी जीजी को भी अपनी
करनी पर अब खेद है !
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ये सोचती सुमित्रा ने
उर्मिल से बस इतना कहा ,
आ निकट पुत्री ! मेरी
न मन ही मन अश्रु बहा !
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उर्मिल ने देखा मात को
आई वहाँ उनके निकट ,
माता की पीड़ा देखकर
उर गया उर्मिल का फट !
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बोली दबाकर पीड़ा निज
माँ ! आज आप मौन हैं !
बस देखती एकटक मुझे
और सब कुछ गौण है !
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माता ने देखा नेह से
उर्मिल निकट ही थी खड़ी ,
नन्ही सी उनकी उर्मिला
करने लगी बातें बड़ी !
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उर के समीप लाइ तब
ममता छलकने थी लगी ,
मुरझाये न दुःख -ताप से
मेरी सुकोमल सी कली !
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चौदह बरस विरह-ताप को
कैसे सहेगी उर्मिला ?
जब मैं स्वयं अधीर हूँ
कैसे दूं इसको सांत्वना ?
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देख माता को विकल
उर्मिल ने बस इतना कहा ,
हे मात! रखिए धैर्य
टल जायेगा संकट महा !
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मैं हूँ जनक की नंदनी
सीता की छोटी हूँ बहन ,
हमको सिखाया मात ने
कैसे निभाते पत्नी-धर्म ?
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विचलित नहीं व्यथित नहीं ,
मुझको अटल विश्वास है ,
आयेंगें लौट सब कुशल ,
चौदह बरस की बात है !
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आप चिंतित न हो माँ !
है ये परीक्षा की घडी ,
धर्म -पथ पर बढे प्रिय
उर्मिल भी उस पर बढ़ चली !
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अब शोक मात !त्यागिये ,
उर्मिल निवेदन कर रही ,
हैं आप ही सम्बल मेरा
हे मात ! आप महिमामयी !
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उर्मिल वचन फुहार से
माँ का ह्रदय शीतल भया ,
मनोकामना बस हो कुशल से
लखन संग रघुबर-सिया !

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

''लंका में सन्नाटा है !!''


नाभि का अमृत सुखा राम ने लंकेश शीश को काटा है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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भूमि पर गिरा दशानन जब स्तब्ध रह गए त्रिलोक ,
सहसा कैसे विश्वास करें मिट गया पाप का मूल स्रोत ,
ध्वजा कटी अन्याय की फहरी धर्म-पताका है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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अब सिया-राम का हो मिलन उत्कंठित है लक्ष्मण का उर ,
श्री राम ने भेजा हनुमत को जो चले ह्रदय में हर्ष भर ,
श्री राम भक्त हनुमत को देख अति हर्षित सीता माता हैं !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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बोले हनुमत हे मात ! सुनो श्री राम ने मारा रावण को ,
भगवन ने मुझको भेजा है आदर से आपको लाने को ,
ये दास आपके चरणों में श्रद्धा से शीश झुकाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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पहुंची सीता माता ज्यूँ ही हनुमत के संग श्री राम समक्ष ,
''शुद्धि परीक्षा 'देने की श्री राम ने रख दी कठिन शर्त ,
नाग पितृ-सत्ता का यूँ स्त्री के डंक चुभाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
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''अग्नि-परीक्षा'' दे सिया श्री राम के चरणों में झुकी ,
पाकर सीता मृगनयनी को मुदित भये करुणा के निधि ,
जो खेल रचा है होनी ने अनायास ही होता जाता है !
वानर दल में उत्साह अपार और लंका में सन्नाटा है !!
शिखा कौशिक 'नूतन'