भक्त मंडली

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !


हे अनुज मेरे ! मेरे लक्ष्मण ! एक व्यथा ह्रदय को साल रही ,
साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !
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जब चला था वचन निभाने मैं कितने थे व्यथित पितु मेरे !
एक पल सोचा था रुक जाऊँ पर धर्म का संकट था घेरे !
रघुकुल की रीत निभाना ही उस वक्त लगा था मुझे सही !
साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !
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माँ ने बतलाया था मुझको पितु करते कितना स्नेह हमें !
ले गोद हमें हर्षित होते जब हम सब थे नन्हे-मुन्ने !
अब तात के दर्शन न होंगे उर फट जाता है सोच यही !
साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !
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स्मरण तुम्हें होगा लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र पधारे थे !
जाने को दे दी थी आज्ञा पर चिंतित तात हमारे थे !
संकट से घिरे देख हमको नयनों से अश्रुधार बही !
साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !
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कर्तव्य ज्येष्ठ संतान का है दे अग्नि पितृ-चिता को वो !
पर राम अभागा कितना है पितृ-ऋण से उऋण न जो !
हूक सी उठती है उर में जाती न मुझसे हाय सही !!
साकेत कहाँ साकेत रहा जिसमे स्नेही तात नहीं !
शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

लक्ष्मण-रेखा का यथार्थ !

यह एक आश्चर्य का विषय है कि लोक में प्रचलित कुछ उक्तियाँ आमजन सहित महान रचनाकारो द्वारा वास्तविक अर्थों को ग्रहण किये बिना शब्दशः अर्थ लेकर अगली पीढ़ी तक पहुंचा दिए जाते हैं . ''रामायण' के 'सीता-हरण' प्रसंग के सम्बन्ध में श्री लक्ष्मण द्वारा पंचवटी में एक रेखा खींचकर माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी ऐसा ही लोकप्रसिद्ध प्रलाप प्रतीत होता है .वेदतुल्य प्रतिष्ठा प्राप्त इस भूतल का प्रथम महाकाव्य श्रीमद वाल्मीकि जी द्वारा सृजित किया गया है .महाकवि द्वारा रची गयी रामकथा लोक में इतनी प्रसिद्द हुई कि आने वाले कवियों ने इस कथा को अपने अपने ढंग से पाठकों व् भक्तों के सामने प्रस्तुत किया पर सर्वाधिक प्रमाणिक ''श्रीमद्वाल्मीकि रामायण '' ही है . ''सीता-हरण' के प्रसंग में आदिकवि ने अपने इस महाकाव्य में कहीं भी 'लक्ष्मण -रेखा' का उल्लेख नहीं किया है .माता सीता द्वारा मार्मिक वचन कहे जाने पर श्री लक्ष्मण अपशकुन उपस्थित देखकर माता सीता को सम्बोधित करते हुए कहते हैं -''रक्षन्तु त्वाम...पुनरागतः ''[श्लोक-३४,अरण्य काण्ड , पञ्च चत्वाविंशः ] अर्थात -विशाललोचने ! वन के सम्पूर्ण देवता आपकी रक्षा करें क्योंकि इस समय मेरे सामने बड़े भयंकर अपशकुन प्रकट हो रहे हैं उन्होंने मुझे संशय में डाल दिया है . क्या मैं श्री रामचंद्र जी के साथ लौटकर पुनः आपको कुशल देख सकूंगा ?'' माता सीता लक्ष्मण जी के ऐसे वचन सुनकर व्यथित हो जाती हैं और प्रतिज्ञा करती हैं कि श्रीराम से बिछड़ जाने पर वे नदी में डूबकर ,गले में फांसी लगाकर ,पर्वत-शिखर से कूदकर या तीव्र विष पान कर ,अग्नि में प्रवेश कर प्राणान्त कर लेंगी पर 'पर-पुरुष' का स्पर्श नहीं करेंगी .[श्लोक-३६-३७ ,उपरोक्त] माता सीता की प्रतिज्ञा सुन व् उन्हें आर्त होकर रोती देख लक्ष्मण जी ने मन ही मन उन्हें सांत्वना दी और झुककर प्रणाम कर बारम्बार उन्हें देखते श्रीरामचंद्र जी के पास चल दिए .[श्लोक-39-40 ] .स्पष्ट है कि लक्ष्मण जी ने इस प्रसंग में न तो कोई रेखा खींची और न ही माता सीता को उस रेखा को न लांघने का निर्देश दिया .तर्क यह भी दिया जा सकता है कि यदि कोई रेखा खींचकर माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती थी तो लक्षमण माता सीता को मार्मिक वचन बोलने हेतु विवश ही क्यों करते .वे श्री राम पर संकट आया देख-सुन रेखा खेंचकर तुरंत श्री राम के समीप चले जाते अथवा यहाँ यह तर्क भी असंगत प्रतीत होता है श्री लक्ष्मण पंचवटी में माता सीता को अकेला छोड़कर जाते तो श्री राम की आज्ञा का उल्लंघन होता .यदि एक रेखा खींचकर ही माता सीता की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती थी तो श्री राम मृग के पीछे अकेले क्यों जाते ?अथवा ये निर्देश क्यों देते -''प्रदक्षिणेनाती ....शङ्कित: ' [श्लोक-५१ ,अरण्य काण्ड ,त्रिचत्वा रिनश: ] -''लक्ष्मण !बुद्धिमान पक्षी राज गृद्धराज जटायु बड़े ही बलवान और सामर्थ्यशाली हैं .उनके साथ ही यहाँ सदा सावधान रहना .मिथिलेशकुमारी को अपने संरक्षण में लेकर प्रतिक्षण सब दिशाओं में रहने वाले राक्षसों की और चैकन्ने रहना .'' यहाँ भी श्रीराम लक्ष्मण जी को यह निर्देश नहीं देते कि यदि किसी परिस्थिति में तुम सीता की रक्षा में अक्षम हो जाओ तो रेखा खींचकर सीता की सुरक्षा सुनिश्चित कर देना .इसी प्रकार श्री वेदव्यास जी द्वारा रचित ''अध्यात्म रामायण' में भी 'सीता-हरण' प्रसंग के अंतर्गत लक्ष्मण जी द्वारा किसी रेखा के खींचे जाने का कोई वर्णन नहीं है .माता सीता द्वारा लक्ष्मण जी को जब कठोर वचन कहे जाते हैं तब लक्ष्मण जी दुखी हो जाते हैं यथा -'इत्युक्त्वा ..........भिक्षुवेषधृक् ''[श्लोक-३५-३७,पृष्ठ -१२७] ''ऐसा कहकर वे (सीता जी ) अपनी भुजाओं से छाती पीटती हुई रोने लगी .उनके ऐसे कठोर शब्द सुनकर लक्ष्मण अति दुखित हो अपने दोनों कान मूँद लिए और कहा -'हे चंडी ! तुम्हे धिक्कार है ,तुम मुझे ऐसी बातें कह रही हो .इससे तुम नष्ट हो जाओगी .'' ऐसा कह लक्ष्मण जी सीता को वनदेवियों को सौपकर दुःख से अत्यंत खिन्न हो धीरे-धीरे राम के पास चले .इसी समय मौका समझकर रावण भिक्षु का वेश बना दंड-कमण्डलु के सहित सीता के पास आया .'' यहाँ कहीं भी लक्ष्मण जी न तो रेखा खींचते हैं और न ही माता सीता को उसे न लांघने की चेतावनी देते हैं .तुलसीदास जी द्वारा रचित ''श्रीरामचरितमानस'' में भी सीता-हरण के प्रसंग में लक्ष्मण जी द्वारा किसी रेखा के खींचे जाने का उल्लेख नहीं है .अरण्य-काण्ड में सीता -हरण के प्रसंग में सीता जी द्वारा लक्ष्मण जी को मर्म-वचन कहे जाने पर लक्ष्मण जी उन्हें वन और दिशाओं आदि को सौपकर वहाँ से चले जाते हैं -''मरम वचन जब सीता बोला , हरी प्रेरित लछिमन मन डोला !बन दिसि देव सौपी सब काहू ,चले जहाँ रावण ससि राहु !'' [पृष्ठ-५८७ अरण्य काण्ड ]लक्ष्मण जी द्वारा कोई रेखा खीचे जाने और उसे न लांघने का कोई निर्देश यहाँ उल्लिखित नहीं है .वास्तव में ''लक्ष्मण -रेखा का सम्बन्ध पंचवटी में कुटी के द्वार पर खींची गयी किसी रेखा से न होकर नर-नारी के लिए शास्त्र दवरा निर्धारित आदर्श लक्षणों से प्रतीत होता है .यह नारी-मात्र के लिए ही नहीं वरन सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आवश्यक है कि विपत्ति-काल में वह धैर्य बनाये रखे किन्तु माता सीता श्रीराम के प्रति अगाध प्रेम के कारण मारीच द्वारा बनायीं गयी श्रीराम की आवाज से भ्रमित हो गयी .माता सीता ने न केवल श्री राम द्वारा लक्ष्मण जी को दी गयी आज्ञा के उल्लंघन हेतु लक्ष्मण को विवश किया बल्कि पुत्र भाव से माता सीता की रक्षा कर रहे लक्ष्मण जी को मर्म वचन भी बोले .माता सीता ने उस क्षण अपने स्वाभाविक व् शास्त्र सम्मत लक्षणों धैर्य,विनम्रता के विपरीत सच्चरित्र व् श्री राम आज्ञा का पालन करने में तत्पर देवर श्री लक्ष्मण को जो क्रोध में मार्मिक वचन कहे उसे ही माता सीता द्वारा सुलक्षण की रेखा का उल्लंघन कहा जाये तो उचित होगा .माता सीता स्वयं स्वीकार करती हैं- '' हा लक्ष्मण तुम्हार नहीं दोसा ,सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा !'' [पृष्ठ-५८८ ,अरण्य काण्ड ]निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि लक्ष्मण रेखा को सीता-हरण के सन्दर्भ में उल्लिखित कर स्त्री के मर्यादित आचरण-मात्र से न जोड़कर देखा जाये .यह समस्त मानव-जाति के लिए निर्धारित सुलक्षणों की एक सीमा है जिसको पार करने पर मानव-मात्र को दण्डित होना ही पड़ता है .तुलसीदास जी के शब्दों में -''मोह मूल मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ ''शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

नूतन रामायण [भाग-चार (सम्पूर्ण) ]


७९-
कपि पूंछ में आग लगाओ
लंका में आने का
इसको मजा चखाओ !
.......................................
८०-
देकर क्रूर ये आदेश
हुआ निश्चिन्त
अधम लंकेश !
.............................
८१-
हनुमत पूंछ में आग लगाईं
''जय श्री राम ''का उच्चारण कर
हनुमत निज शक्ति दिखलाई !
........................................
८२-
लंका दहन किये हनुमान
चूड़ामणि सिया से लेकर
किया उन्हें प्रणाम !
..............................
८३-
लौटे वानर मधुबन आये
विध्वंस मधुबन सुनकर
सुग्रीव अति हर्षाये !
..............................
८४-
हनुमत सिया सुधि ले आये
किष्किन्धा में पहुँच
प्रभु को समाचार बतलाये !
...................................
८५-
चूड़ामणि प्रभु को दिखलाई
सिया स्मृति कर
प्रभु आँखें भर आई !
..............................
८६
प्रभु करते हनुमान बढाई
ह्रदय लगाया भक्त को
भक्तवत्सल हैं रघुराई !
..................................
८७-
लंका में रावण से अनुरोध
करते बहुत विभीषण
सीता को दो वापस भेज !
................................
८८-
रावण से अपमानित होकर
चले विभीषण राम समीप
शरणागत वत्सल हैं रघुबर !
..................................
८९-
अर्णव पार विभीषण आये
प्रभु दर्शन कर
फूले नहीं समाये !
............................
९०-
प्रभु ने कहकर उन्हें लंकेश
सागर जल से किया वहां
विभीषण का अभिषेक !
.................................
९१-
सागर तट पर पहुंची सेना
कुशा का आसन बिछा राम ने
शुरू किया धरना देना !
...............................
९२-
तीन दिवस जब गए बीत
दर्शन न पाकर समुन्द्र के
राम ने प्रत्यंचा दी खींच !
....................................
९३-
कनक थाल ले प्रकटे अर्णव
नल कर सकता पुल निर्माण
दी राम को सलाह अनुपम !
.......................................
९४-
सौ योजन का पुल निर्माण
नल सहित वानर दल ने
हर्षित होकर किया ये काम !
.....................................
९५-
पुल से पहुंची सेना पार
लंका में डंका बजा
दी रावण को थी ललकार !
..................................
९६-
अंगद गए रामदूत बन
रावण के दरबार
पर न माना दशानन !
..........................
९७-
वानर-राक्षस युद्ध घनघोर
मेघनाद के नागपाश में बंधे
राम-लखन वीर-सिरमौर !
...........................
९८-
हनुमान गरुड़ को लाये
राम-लखन भये मुक्त पाश से
सबके मन हर्षाये !
...............................
९९-
धूम्राक्ष ,वज्रदष्ट्र ,अकम्पन ,प्रहस्त
हनुमत -अंगद सहित दल ने
किया सभी को पस्त !
..................................
१००-
क्रोधित रावण कुम्भकर्ण जगाया
कुम्भकर्ण ने रणभूमि में
तांडव बहुत मचाया !
.................................
१०१-
हुआ भयंकर महायुद्ध
कुम्भकर्ण का राम ने
किया अंत में वध !
...............................
१०२-
त्रिशिरा ,महोदर ,देवांतक
हनुमत आदि वीरो ने
किया शीघ्र ही उनका वध !
..................................
१०३-
लक्ष्मण व् अतिकाय बीच
हुआ भयंकर युद्ध वहां
मारा गया दुष्ट वह नीच !
.......................
१०४-
तब आया वहां इन्द्रजीत
मायावी ने शक्ति मारी
हुए लखन उस क्षण मूर्छित !
..............................
१०५-
हनुमत तब संजीवनी लाये
गंध सूंघ संजीवनी की
चेते लक्ष्मण राम हर्षाये !
......................................
१०६-
निकुम्बला मंदिर गए लखन
कर यज्ञ विध्वंस
इन्द्रजीत को मारा हर्षित देवगण !
.....................................
१०७-
राम-रावण युद्ध भयंकर
रावण प्राण हरे
राम रूप जगत के ईश्वर !
....................................
१०८-
पुष्पक अद्भुत एक विमान
हो आसीन सिया-लखन संग
लौट चले अवध श्री राम !
........................................
१०९-
प्रभु-दर्शन कर प्रजा हरषाई
भ्रात -मात से मिल कर
श्रीराम अँखियाँ भर आई !
........................................
११०-
राम के गुण अनेकानेक
बने अवध के राजा
हुआ राज्याभिषेक !
..............................
१११-
युगल छवि सियाराम की !
बसे सदा उर मेरे !
यही प्रार्थना दास की !
[कथा सम्पूर्ण]
जय सियावर रामचंद्र जी की !
शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

नूतन रामायण [भाग-तीन ]


५२-
शूर्पनखा तब लंका धाई
जनस्थान की दुर्दशा
रावण को बतलाई !
.................................
५३-
रावण अधम पापी व् नीच
सिया हरण षड्यंत्र रचा
बना स्वर्ण मृग मारीच !
...............................
५४-
स्वर्ण मृग सीता को भाया
चले राम जब पकड़ने
उसने बहुत दूर भगाया !
.................................
५५-
सुन छली मारीच पुकार
भ्रमित भई माता सीता
लक्ष्मण को भेजा उसी ओर !
...........................
५६-
पीछे साधू वेश बना
दुष्ट दशानन ने
माता सीता को हरा !
....................................
५७-
सुन सिया रुदन
वृद्ध जटायु लड़े दुष्ट से
जब तक प्राण किये धारण !
............................................
५८-
उधर नीच मारीच मार
अति चिंतित लक्ष्मण सहित
पंचवटी लौटे श्री राम !
....................................
५९-
सीता कहीं नज़र न आई
व्यथित भये करुनानिधान
लक्ष्मण आस बंधाई !
........................................
६०-
हुई जटायु से फिर भेंट
जान सिया की करुण दशा
लगी राम के उर पर ठेस !
........................................
६१-
तब त्यागे जटायु प्राण
दाह संस्कार किया प्रभु ने
दिया पिता के सम सम्मान !
....................................
६२-
प्रभु किये कबंध उद्धार
दिव्य रूप पाकर किये
उसने प्रकट शुभ उद्गार !
..............................
६३-
राम लखन को पथ बतलाये
ऋष्यमूक ,पम्पसरोवर
मतंग ऋषि आश्रम जनवाये !
............................
६४-
मतंग आश्रम पहुंचे राम
शबरी ने करके सत्कार
किया दिव्य धाम प्रस्थान !
.......................................
६५-
पहुंचे प्रभु पम्पासर तट
हुए सुग्रीव भयभीत
पठाया हनुमत को झटपट !
.................................
६६-
प्रभु का परिचय जान
नतमस्तक श्री राम चरण में
हुए भक्त हनुमान !
..............................................
६७-
श्री राम -सुग्रीव मित्रता
बालि-वध का लिया प्रण
मिटे दुष्ट की धृष्टता !
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६८
बालि वध कर दिया दंड
रहो सयंमित , मत भोग करो
कन्या सम चारी संग !
......................................
६९-
सुग्रीव पाए किष्किन्धा राज
बालि-तारा पुत्र
अंगद बने युवराज !
......................
७०-
प्रस्रवण गिरि पर चातुर्मास
सिया विरह में सभी ऋतू
देती राम ह्रदय को त्रास !
.....................................
७१
शरद ऋतू का आगमन
विस्मृत वचन किये सुग्रीव
किष्किन्धा पहुंचे लक्ष्मण !
..................................
७२-
सुग्रीव पधारे राम समीप
सैन्य संग्रह उद्योग बताया
जगे आस के बुझे दीप !
..................................
७३-
चहुँ दिशी गए वानर वीर
दक्षिण में सोने की लंका
पहुंचे लाँघ अर्णव महावीर !
..............................
७४-
मात सिया का पता लगाया
राम मुद्रिका भेंट कर
श्री राम सन्देश सुनाया !
..................................
७५ -
अशोक वाटिका दी उजाड़
हनुमत मारे अक्षय कुमार
मेघनाद रहा चिंघाड़ !
...............................
76 -
मेघनाद ब्रह्मास्त्र चलाया
स्वयं बंधे संकटमोचन
दिव्यास्त्र का मान बढाया !
.............................
७७-
दम्भी रावण को समझाया
प्रभु राम की महिमा पर
राक्षसराज समझ न पाया !
..............................
७८-
हनुमत वध आदेश सुनाया
हस्तक्षेप कर विभीषण ने
इसको अनुचित था बतलाया !
......................................
[जारी है ]
शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

नूतन रामायण [भाग-दो ]


२५-
पहुंचे भरद्वाज आश्रम पर
सिया लखन के संग
प्रभु करुनाकर !
......................................
२६-
चित्रकूट पथ मुनि बताये
सिया लखन के संग राम ने
वाल्मीकि के दर्शन पाए !
..............................
२७-
लक्षमण एक पर्णशाला बनाई
वास्तु शांति कर
सिया सहित कुटि पधारे रघुराई !
.....................................
२८ -
इधर सुमंत्र अयोध्या आये
श्री राम का संदेसा
राजा को सुनाएँ !
...................................
२९-
पुत्र विरह का शोक
प्राण-त्याग दशरथ
गए परलोक !
..............................
३० -
गुरु वशिष्ठ ने दूत पठाए
कैकेयी देश से शीघ्र
भरत - शत्रुघ्न बुलाये !
....................................
३१-
लौट अयोध्या दोनों आये
पितृ-मृत्यु का समाचार
पाकर अकुलाये !
..................................
३२-
प्रिय पिता परलोकवास
चौदह बरस राम वनवास
सुनकर भरत करते विलाप !
...................................
३३-
लगा वज्र - आघात
भरत क्रोधित भये
धिक्कारी निज मात !
......................................
३४-
दैव ने दारुण दुःख दिया
भरत निभाया पुत्र धर्म
अंत्येष्टि संस्कार किया !
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३५-
भरत ह्रदय में कर प्रण
श्रीराम को लौटा लाने का
चित्रकूट को किया गमन !
...............................
३६-
भरत राम का प्रिय मिलाप
पिता- स्वर्गवास सुनकर
राम-लखन करते विलाप !
...............................
३७-
प्रभु से करें भरत निवेदन
लौट चलो फिर अवध को
राज्य -ग्रहण करो इसी क्षण !
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३८-
राम ने धर्म मर्म समझाये
राम की चरण पादुका लेकर
भरत लौटकर अवध को आये !
..................................
३९-
भरत बनाकर नंदीग्राम
प्रतिनिधि बनकर करें
श्री राम के काम !
...............................
४०-
श्री राम गए अत्रि आश्रम
दिए मात अनुसूया ने
सिया को वस्त्राभूषण !
...............................
४१-
चले वहां से वन -घनघोर
किया विराध का वध
राम-लखन वीर सिरमौर !
...................................
४२-
प्रभु पहुंचे शरभंग आश्रम
देवों के दर्शन किये
किया ऋषि ने ब्रह्मलोकगमन !
...................................
४३-
हुई सुतीक्ष्ण से राम की भेंट
पहुंचे अगस्त्य आश्रम
ऋषि दिए शास्तास्त्र अनेक !
....................................
४४-
पंचवटी में करो कुटि निर्माण
अगस्त्य दिए निर्देश
प्रभु किये वहां प्रस्थान !
.................................
४५-
मिले जटायु पंचवटी के पास
लखन बनाये पर्णकुटी
सिया सहित प्रभु करें निवास !
...............................
४६-
शूर्पनखा का हुआ आगमन
राम रूप पर रीझकर
करती प्रणय - निवेदन !
..................................
४७-
श्री राम ने हँसकर टाला
रूप भयंकर धर दुष्टा ने
सीता को धमका डाला !
..........................
४८-
लखन खडग ले हाथ
नाक कान उस दुष्टा के
तत्काल दिए थे काट !
..............................
४९-
लिए कटे नाक व् कान
क्रोधित अपमानित दुष्टा
पहुंची जनस्थान !
..............................
५०-
दुर्दशा का कारण जान
खर-दूषण ने क्रोध में
पंचवटी को किया प्रस्थान !
..............................................
५१-
हुआ घोर संग्राम
खर-दूषण-त्रिसिरा मरे
जय जय जय श्री राम !
[जारी है ....]
जय सिया राम जी की
शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

नूतन रामायण [भाग एक ]


नूतन रामायण सुनो ,
भक्ति-भाव के साथ ,
नयन बसा लो युगल छवि
और जोड़ लो हाथ !
.......................................
श्री गणेश को नमन है ,
दें महादेव आशीष ,
सिया राम के चरणों में
झुक रहे निज शीश !

                                                                  नूतन रामायण
१-
पावन धाम
राजा दशरथ
अयोध्या नाम !
..............................
२-
रानी तीन
एक ही चिंता
राजा पुत्रविहीन !
...........................
३-
ऋषि पधारे
ऋषयश्रंग
हर्षित भये सारे
.........................
४-
पुत्रोत्पत्ति यज्ञ करवाया ,
अग्निकुंड से प्रकट पुरुष
खीर था लाया !
................................
५-
खाकर खीर दिव्य
गर्भवती भाई रानियाँ ,
राजा दशरथ धन्य !
.............................
६-
जन्मे पुत्र चार ,
ज्येष्ठ राम
श्री हरि अवतार !
..........................
७-
राजा दशरथ मग्न
पाकर राम -भरत
लखन व् शत्रुघ्न !
..............................
८-
विद्या पाई
अल्प काल में
चारो भाई !
...........................
९-
विश्वामित्र अयोध्या आये ,
विवश भए दशरथ
राम-लखन ऋषि संग पठाए !
.............................
१०-
ताटका मारी
श्री राम
अद्भुत धनुर्धारी !
.............................
११-
सिद्धाश्रम में यज्ञ रक्षा
सौ योजन मारीच को फेंका
मार सुबाहु मुनि सुरक्षा !
................................
१२-
किया अहिल्या का उद्धार
श्री राम की महिमा
है अपरम्पार !
........................
१३-
मिथिला गए गुरु के संग
वारा सिया को
किया शिव-धनु भंग !
..........................
१४-
भारत-मांडवी ,लखन-उर्मिला,
श्रुतिकीर्ति -रिपुदमन
का हुआ मिलन !
.................................
१५-
राजा दशरथ हर्षित मन
पुत्र-पुत्रवधुओं संग
अयोध्या आगमन !
.............................
१६-
देख राम के गुण अनेक
करेंगें दशरथ
उनका राज्यभिषेक !
................................
१७
अयोध्यावासी हुए प्रसन्न
पर कैकेयी दासी
मंथरा खिन्न !
..............................
१८-
मंथरा ने कुचक्र चलाया
उकसाकर कैकेयी को
कोपभवन भिजवाया !
.....................................
१९-
दशरथ पहुंचें कोपभवन
कुपित रानी ने मांग लिए
विस्मृत दोउ वचन !
............................
२०-
मिले भारत को अयोध्या राज
और राम को
चौदह बरस वनवास !
...............................................
२१-
रघुकुल रीत निभाई
सिया लखन संग
गए वन रघुराई !
............................
२२-
श्रृंगवेरपुर पहुंचें रघुराई
मित्र गुह से भेंटें
नौका मंगवाई !
..........................
२३-
तात सुमंत्र को था समझाया
श्रीराम ने दे संदेसा
वापस उन्हें लौटाया !
.........................
२४-
नौका पर होकर सवार
सिया ने पूजी गंगा-मत
फिर की गंगा पार !
............................
[जारी है ]
जय सियाराम जी की !

शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

रावण का प्रायश्चित


श्री राम का वाण लगा जाकर ,

नाभि का अमृत गया सूख ,

फिर कटे दश-आनन् एक एक कर ,

गिरा राम चरण में दम्भी -मूर्ख !

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अंतिम श्वासें भरता-भरता

करता प्रायश्चित बोला रावण ,

श्री राम किया उपकार बड़ा ,

मैं हाथ जोड़ता इस कारण !

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वध आज हुआ पर हे भगवन !

मृत उस दिन से है मेरा मन ,

जब पंचवटी से हर लाया ,

जगजननी माँ सीता पावन !

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ये तन तो आज मैं त्यागूंगा ,

करता रहा जिससे पाप कर्म ,

पर यश फैले सीता माँ का ,

जो रही निभाती पत्नी-धर्म !

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मेरे वैभव ,शक्ति-बल से

विचलित न हुई किसी भी क्षण ,

उन सीता माँ का उर से मैं ,

करता हूँ शत-शत अभिनन्दन !

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श्री राम आप हैं परमपिता ,

इस दम्भी पुत्र पर दया करें ,

चिर संग आपके रहें सिया ,

मुझ पापी को अब क्षमा करें !

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श्री राम-सिया की युगल छवि ,

मेरे प्राणों में बसी रहे ,

युग-युग तक जब भी जन्म मिले

जिह्वा सियाराम सियाराम कहे !

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ये कहते कहते रावण ने ,

उस कलुषित देह को दिया त्याग ,

सब पाप कटे ; धुला काम-मैल ,

सियाराम का है अनुपम प्रताप !





शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 1 अगस्त 2013

जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !

Ram Laxman Sita Hanuman HD
चौदह  बरस की देर रामराज में न होती
सर्वाधिकार सुरक्षित 

चौदह  बरस की देर रामराज में न होती ,
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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राम के वियोग में दशरथ का प्राण-त्याग ,
तीनों रानियों का लुट गया सुहाग ,
आज अवध में यूँ उदासी न  होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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कैकेयी को श्री राम से था सर्वाधिक स्नेह ,
मंथरा ने भ्रमित किया आ गयी प्रलय ,
कैकेयी पश्चाताप में यूँ जल रही न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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राम बिन भरत का उर कर रहा विलाप ,
चित्रकूट में हुआ श्री राम से मिलाप ,
भ्रातृ प्रेम की बही अमृत सुधा ना होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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हनुमान  जैसे  भक्त  से श्रीराम का मिलन ,
सुग्रीव संग मैत्री मिटा बालि-अघ का तम ,
श्री राम की सेना यूँ संगठित न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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चौदह बरस के कष्ट और सिया का हरण ,
लक्ष्मण को शक्ति -घात व् रावण का मरण ,
ये सभी घटनाएँ यूँ ही घट गयी न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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लंका पर विजय विभीषण का अभिषेक ,
सीता की अग्नि-परीक्षा राम आये फिर साकेत ,
साकेत के धीरज की यूँ परीक्षा न होती !
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !
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'रावण के घर रही सिया 'अवध में उठा अपवाद ,
सीता गयी वनवास महारानी पद त्याग ,
क्यूँ  लव-कुश की जननी धरा में समाई होती ?
जो कैकेयी के मंथरा सी दासी न होती !

शिखा कौशिक 'नूतन '



बुधवार, 26 जून 2013

लंका सहित जला डाला रावण का सब अभिमान




Lord Hanuman
सर्वाधिकार सुरक्षित 




संकट !में हैं  प्राण   ,  हमको कष्ट महान ,
आओ कृपानिधान  ! संकटमोचन श्री हनुमान
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श्रीराम -सुग्रीव मित्रता आपने करवाई थी ,
बाली- वध कर श्रीराम ने मित्रता निभाई थी ,
महावीर तुम कर देते हो हर मुश्किल आसान !
आओ कृपानिधान  ! संकटमोचन श्री हनुमान !
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एक छलाँग  में सौ योजन का अर्णव तुमने पार किया ,
माँ सीता को श्रीराम का अमृतमय सन्देश दिया ,
लंका सहित जला डाला रावण का सब अभिमान !
आओ कृपानिधान  ! संकटमोचन श्री हनुमान !

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मेघनाद ने मारी शक्ति लक्ष्मण जी अचेत हुए ,
लेकर आये तुम संजीविनी जिससे वे सचेत भए ,
राम भक्त सब वीरों में तुम सर्वाधिक बलवान !
आओ कृपानिधान  ! संकटमोचन श्री हनुमान !

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दया करो हम पर भी हनुमत विनती यही हमारी है,
पवन-पुत्र तुमसे बढ़कर ना कोई पर-उपकारी है ,
मूढमति हम  क्या गा सकते तेरा महिमा गान !
आओ कृपानिधान  ! संकटमोचन श्री हनुमान !

            शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 15 जून 2013

सीता अपमान का प्रतिउत्तर !



सीता अपमान का प्रतिउत्तर !
Sita Mata
आज जनकपुर स्तब्ध  भया ;  डोल गया विश्वास है  ,
जब से जन जन को ज्ञात हुआ मिला सीता को वनवास है .

मिथिला के जन जन के मन में ये प्रश्न उठे बारी बारी ,
ये घटित हुई कैसे घटना सिया राम को प्राणों से प्यारी ,
ये कुटिल चाल सब दैव की ऐसा होता आभास है .

हैं आज जनक कितने व्याकुल  पुत्री पर संकट भारी है ?
ये होनी है बलवान बड़ी अन्यायी अत्याचारी है ,
जीवन में शेष कुछ न रहा टूटी मन की सब आस है .

माँ सुनयना भई मूक बधिर अब कहे सुने किससे और क्या ?
क्या इसीलिए ब्याही थी सिया क्यों कन्यादान था हमने किया ?
घुटती   भीतर भीतर माता आती न सुख की श्वास है !

सीता की सखियाँ  रो रोकर हो जाती आज अचेत हैं ,
प्रस्तर से ज्यादा हुआ कठोर श्रीराम का ये साकेत है ,

सीता हित चिंतन करती वे हो जाती सभी उदास हैं !

मिथिलावासी करते हैं प्रण  युग युग तक सभी निभावेंगे ,
पुत्री रह जाये अनब्याही अवध में नहीं ब्याहवेंगें ,
सीता अपमान का प्रतिउत्तर मिथिला के ये ही पास है  !


शिखा कौशिक 'नूतन'

  

बुधवार, 12 जून 2013

फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !

फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का !

फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का !

भगवा रंग पताका लगती हम सबको मनभावन , 
भक्ति रस उर में भर देती निर्मल है अति पावन ,
मध्य में अंकित ॐ का  दर्शन सारे पाप मिटाता ! 
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का !

सारी वसुधा एक कुटुंब है ये सन्देश फैलाती ,
सत्यमेव जयते की जोत हर ह्रदय में ये है जगाती ,
झुकाती रहे झुकाती रहे शीश हर रावण का !
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का !

कण कण में भगवान बसे हैं सबको है बतलाती ,
प्रेम-अहिंसा करुणा का है नैतिक पाठ पद्धति ,
भर्ती रहे भरती रहे मानव में ये नैतिकता !
फहरती रहे फहरती रहे सनातन धर्म पताका !
करती रहे करती रहे कल्याण मानवता का !

शिखा कौशिक 'नूतन'



मंगलवार, 11 जून 2013

रहे अधरों पे हनुमत के राम जी का नाम !!

   
Hanuman Ji WallpaperHanuman Ji Wallpaper   
पल  भर न करते तनिक विश्राम  ,
तत्पर  प्रभु  सेवा  को हनुमान  ,
रहे अधरों पे हनुमत के राम जी का  नाम  !!


अर्णव पर किया क्षण भर में सीता माँ को खोजा ,
राम मुद्रिका संग प्रभु का दिया उन्हें संदेसा ,
राम भक्त होने का पाया माता से वरदान !
रहे अधरों पे हनुमत के राम जी का  नाम  !!


Hanuman Ji WallpaperHanuman Ji Wallpaper  


नागपाश में बधें प्रभु लखन  लाल के संग ,
भयाक्रांत हुई वानर सेना उत्साह हुआ था भंग ,
पक्षीराज को लाकर टाला संकट एक महान !
रहे अधरों पे हनुमत के राम जी का  नाम  !!

    

लक्ष्मण  जी के शक्ति मारी मेघनाथ छली था भारी ,
ला संजीवनी प्राण बचाए हनुमत संकट हारी   ,
अंजनी पुत्र की महिमा का त्रिलोकों में गुणगान !
रहे अधरों पे हनुमत के राम जी का  नाम  !!

शिखा कौशिक 'नूतन '






शनिवार, 8 जून 2013

हम लव कुश अपनी जननी पर अभिमान करते हैं

 








हम लव कुश अपनी जननी पर अभिमान करते हैं ,
इन पतिव्रता नारी का सम्मान करते हैं !

अपवाद उठा जब मिथ्या तब वन को गमन किया ,
भीषण कष्टों को सहकर हमको जन्म दिया ,
धर्मचारिणी माता को प्रणाम करते हैं !

प्रथम गुरु माता ने हमको सदाचार सिखलाया ,
दया क्षमा और सेवा  का हमको पाठ  पढाया ,
उपकारी माँ चरणों में निज शीश धरते हैं ! 

अन्याय-पाप से लड़ना माँ हमको सिखलाती ,
कैसे मारा रावण को श्रीराम का यश हैं  गाती ,
संग मात का पाकर हम संस्कारित होते हैं !

शिखा कौशिक 'नूतन'


सोमवार, 3 जून 2013

चुभन में भी मिठास है

Sita : Rama and Sita  

शूल बने फूल हैं , चुभन में भी  मिठास है ,
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



जिस शीश सजना किरीट था उस शीश पर जटा बंधी 
चौदह बरस वनवास पर चले प्रिय महारथी  ,
 मैं भी चली उस पथ पे ही जिस पथ पे प्राणनाथ हैं !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



ये है मेरा सौभाग्य  श्री राम की दासी हूँ मैं ,
प्रिय हैं मेरे अमृत सदृश कंठ तक प्यासी हूँ मैं ,
जन्मों-जन्मों के लिए थामा प्रभु का हाथ है !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



वन वन प्रभु के संग चल चौदह बरस कट जायेंगें ,
भैया लखन को साथ ले वापस अयोध्या आयेंगें ,
होगी सनाथ फिर प्रजा जो हो रही अनाथ है !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !


शिखा कौशिक 'नूतन '

सोमवार, 20 मई 2013

जनकनंदनी की महिमा का आओ हम गुणगान करें !



जानकी जयंती [१९ मई २०१३ ]पर विशेष 


जनकनंदनी  की महिमा का आओ हम गुणगान करें !
श्री राम की प्राण प्रिया के चरणों में निज शीश धरें !!



बड़े भाग मिथिला पति के सीता सम पुत्री पाई ,
सुनयना की शिक्षा जिसने पल भर को न बिसराई ,
त्याग-तपस्या की मूर्ति जानकी का  हम ध्यान करें !
श्री राम की प्राण प्रिया के चरणों में निज शीश धरें !!

  

कुल वधू राजा दशरथ की सिया कौशल्या को प्यारी ,
श्री राम संग झेली वनवास -विपत्ति भारी ,
पतिव्रता जगदम्बा ने निज सुख सारे बलिदान किये !
श्री राम की प्राण प्रिया के चरणों में निज शीश धरें !!



दिया राम ने त्याग सिया को प्रजा में जब अपवाद उठा ,
कुटिल दैव की इस करनी से सिया का यश था नहीं घटा ,
लव-कुश की पावन माता का ह्रदय से हम सम्मान करें !
श्री राम की प्राण प्रिया के चरणों में निज शीश धरें !!




    

पुत्री ,पत्नी , माता धर्म निभाया जिसने दृढ होकर ,
सिया चरित आदर्श यही सन्देश मैं आई हूँ लेकर ,
भारत की इस नारी पर आओ मिलकर अभिमान करें !
श्री राम की प्राण प्रिया के चरणों में निज शीश धरें !!

शिखा कौशिक 'नूतन'