भक्त मंडली

रविवार, 4 नवंबर 2012

वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!



वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते ,
लव-कुश की बाल -लीलाओं  का आनंद प्रभु संग में लेते .



जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा ,
घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा ,
फैलाकर बांहों का घेरा लव-कुश को गोद उठा लेते !
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

ले पकड़ प्रभु की ऊँगली जब लव-कुश चलते धीरे -धीरे ,
किलकारी दोनों की सुनकर मुस्कान अधर आती मेरे ,
पर अब ये दिवास्वप्न है बस रोके आंसू बहते-बहते .
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

लव-कुश को लाकर उर समीप दोनों का माथा लिया चूम ,
तुम केवल वैदेही -सुत हो ; जाना पुत्रों न कभी भूल ,
नारी को मान सदा देना कह गयी सिया कहते -कहते . 
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

                                                                                              शिखा कौशिक 'नूतन '

3 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…
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Shalini kaushik ने कहा…

bahut bhavpoorn abhivyakti.aabhar shikha ji

Dayanand Arya ने कहा…

एक सशक्त रचना ।