भक्त मंडली

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

नूतन रामायण [भाग-चार (सम्पूर्ण) ]


७९-
कपि पूंछ में आग लगाओ
लंका में आने का
इसको मजा चखाओ !
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८०-
देकर क्रूर ये आदेश
हुआ निश्चिन्त
अधम लंकेश !
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८१-
हनुमत पूंछ में आग लगाईं
''जय श्री राम ''का उच्चारण कर
हनुमत निज शक्ति दिखलाई !
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८२-
लंका दहन किये हनुमान
चूड़ामणि सिया से लेकर
किया उन्हें प्रणाम !
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८३-
लौटे वानर मधुबन आये
विध्वंस मधुबन सुनकर
सुग्रीव अति हर्षाये !
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८४-
हनुमत सिया सुधि ले आये
किष्किन्धा में पहुँच
प्रभु को समाचार बतलाये !
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८५-
चूड़ामणि प्रभु को दिखलाई
सिया स्मृति कर
प्रभु आँखें भर आई !
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८६
प्रभु करते हनुमान बढाई
ह्रदय लगाया भक्त को
भक्तवत्सल हैं रघुराई !
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८७-
लंका में रावण से अनुरोध
करते बहुत विभीषण
सीता को दो वापस भेज !
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८८-
रावण से अपमानित होकर
चले विभीषण राम समीप
शरणागत वत्सल हैं रघुबर !
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८९-
अर्णव पार विभीषण आये
प्रभु दर्शन कर
फूले नहीं समाये !
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९०-
प्रभु ने कहकर उन्हें लंकेश
सागर जल से किया वहां
विभीषण का अभिषेक !
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९१-
सागर तट पर पहुंची सेना
कुशा का आसन बिछा राम ने
शुरू किया धरना देना !
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९२-
तीन दिवस जब गए बीत
दर्शन न पाकर समुन्द्र के
राम ने प्रत्यंचा दी खींच !
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९३-
कनक थाल ले प्रकटे अर्णव
नल कर सकता पुल निर्माण
दी राम को सलाह अनुपम !
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९४-
सौ योजन का पुल निर्माण
नल सहित वानर दल ने
हर्षित होकर किया ये काम !
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९५-
पुल से पहुंची सेना पार
लंका में डंका बजा
दी रावण को थी ललकार !
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९६-
अंगद गए रामदूत बन
रावण के दरबार
पर न माना दशानन !
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९७-
वानर-राक्षस युद्ध घनघोर
मेघनाद के नागपाश में बंधे
राम-लखन वीर-सिरमौर !
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९८-
हनुमान गरुड़ को लाये
राम-लखन भये मुक्त पाश से
सबके मन हर्षाये !
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९९-
धूम्राक्ष ,वज्रदष्ट्र ,अकम्पन ,प्रहस्त
हनुमत -अंगद सहित दल ने
किया सभी को पस्त !
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१००-
क्रोधित रावण कुम्भकर्ण जगाया
कुम्भकर्ण ने रणभूमि में
तांडव बहुत मचाया !
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१०१-
हुआ भयंकर महायुद्ध
कुम्भकर्ण का राम ने
किया अंत में वध !
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१०२-
त्रिशिरा ,महोदर ,देवांतक
हनुमत आदि वीरो ने
किया शीघ्र ही उनका वध !
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१०३-
लक्ष्मण व् अतिकाय बीच
हुआ भयंकर युद्ध वहां
मारा गया दुष्ट वह नीच !
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१०४-
तब आया वहां इन्द्रजीत
मायावी ने शक्ति मारी
हुए लखन उस क्षण मूर्छित !
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१०५-
हनुमत तब संजीवनी लाये
गंध सूंघ संजीवनी की
चेते लक्ष्मण राम हर्षाये !
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१०६-
निकुम्बला मंदिर गए लखन
कर यज्ञ विध्वंस
इन्द्रजीत को मारा हर्षित देवगण !
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१०७-
राम-रावण युद्ध भयंकर
रावण प्राण हरे
राम रूप जगत के ईश्वर !
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१०८-
पुष्पक अद्भुत एक विमान
हो आसीन सिया-लखन संग
लौट चले अवध श्री राम !
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१०९-
प्रभु-दर्शन कर प्रजा हरषाई
भ्रात -मात से मिल कर
श्रीराम अँखियाँ भर आई !
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११०-
राम के गुण अनेकानेक
बने अवध के राजा
हुआ राज्याभिषेक !
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१११-
युगल छवि सियाराम की !
बसे सदा उर मेरे !
यही प्रार्थना दास की !
[कथा सम्पूर्ण]
जय सियावर रामचंद्र जी की !
शिखा कौशिक 'नूतन'

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