भक्त मंडली

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

 
हे लक्ष्मण तू बड़भागा है श्री राम शरण में रहता है ,
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

प्रभु इच्छा से ही संभव है प्रभु सेवा का अवसर मिलना ,
हैं पुण्य प्रताप तेरे लक्ष्मण प्रभु सेवा अमृत फल चखना ,
मेरा उर व्यथित होकर के क्षण क्षण ये मुझसे कहता है !
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

 कैकेयीनंदन होने का महा कलंक  मुझ पर है लगा ,
पर ह्रदय साक्षी मेरा है 'श्री राम से बढ़कर नहीं सगा ',
ह्रदय व्यथा ही प्रकट करता जब नयन से अश्रु बहता है !

 ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

 मैं चित्रकूट में आया था प्रभु को लौटा ले जाऊंगा ,
निज-निज धर्म बना बेडी अब चौदह बरस निभाऊंगा,
प्रभु -पादुका शीश पे धर प्रभु के अधीन हो लेता है !
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत खूब .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.